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वसंत की आध्यात्मिक साफ़-सफ़ाई

अप्रैल 23, 2023

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने स्प्रिंग क्लीनिंग (वसंत की सफ़ाई)  के बारे में बात की, और ये बताया कि इस साधारण से घरेलू कार्य से हम क्या आध्यात्मिक सबक सीख सकते हैं। लंबी सर्दियों के बाद जिस तरह हमारे भौतिक घरों को साफ़ करना ज़रूरी है, उसी तरह यह भी ज़रूरी है कि हम अपने सच्चे स्वरूप की, अपनी आत्मा की, सफ़ाई करें। हमारी आत्मा, जोकि परमात्मा का अंश है, अनेकों युगों से प्रभु से बिछुड़ चुकी है। इस दौरान हमारे अनगिनत विचारों, शब्दों, और कार्यों के ज़रिये हमारी आत्मा पर बहुत मैल और गंदगी जमा हो गई है, और वो इन पर्तों के नीचे दब गई है, जिसकी वजह से हम अपनी आत्मा के असली शुद्ध स्वरूप का अनुभव नहीं कर पाते हैं। उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए जिसके लिए हमें ये मानव चोला दिया गया है, हमें अपनी आत्मा का अनुभव करना होगा, और इसके लिए पहला कदम है अपनी आत्मा की सफ़ाई करना। ये सफ़ाई करने के लिए हमें कुछ कदम उठाने होंगे।

सबसे पहले, एक नैतिक जीवन जीकर हमें मज़बूत नींव बनानी होगा, उन चीज़ों को निकाल फेंकना होगा जो हमारे लिए फ़ायदेमंद नहीं हैं, और प्रेम, करुणा, अहिंसा, नम्रता, सच्चाई, और निष्काम सेवा के सद्गुणों से ज़मीन को जोतना होगा। इससे हम प्रभु की ओर शुरुआती कदम बढ़ा सकते हैं। एक मज़बूत नींव बना लेने के बाद, हमें अपने ध्यान को प्रभु की ओर लगाना सीखना चाहिए। ऐसा तब होता है जब हम ध्यान-अभ्यास करते हैं। हमें रोज़ाना नियमित रूप से ध्यान-अभ्यास करना चाहिए, ताकि हम प्रभु के पास वापस जाने वाली यात्रा पर तरक्की कर सकें।

जिस तरह हम अपने घर में बेकार पड़ी चीज़ों को फेंक देते हैं या उन्हें दान में दे देते हैं, उसी तरह हमें उस सब मोह को हटा देना चाहिए जो हमारी आत्मा को आंतरिक यात्रा पर जाने से रोकते हैं। ये मोह उन चीज़ों या रिश्ते-नातों से हो सकता है जो अगर हमसे दूर हो जायें तो बहुत दर्द देते हैं, या उन चीज़ों से हो सकता है जिन्हें हम पाना चाहते हैं और उनके पीछे भागने से हमें दर्द मिलता है। ऐसे मोह हमारे ध्यान को बाहरी संसार में लगाए रखते हैं। जब हम ध्यान-अभ्यास के ज़रिये ख़ुद को प्रभु से जोड़ लेते हैं, तो इन बंधनों को तोड़ना आसान हो जाता है।

हम में से हरेक व्यक्ति प्रभु के पास जाने के लायक़ है। सवाल केवल ये है कि हम प्रभु के साथ होने को कितना महत्त्व देते हैं, हमारे अंदर प्रभु को पाने की कितनी लगन है, और हम अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए कितने समर्पित हैं। हमें सद्गुणों की नींव को मज़बूत करना है, ध्यान-अभ्यास में नियमित होना है, और ये सुनिश्चित करना है कि हमारा ध्यान सही तरीके से टिका रहे, ताकि हम आंतरिक मंडलों में उड़ान भर सकें और प्रभु की उस दिव्य ज्योति व प्रेम का अनुभव कर सकें जो अंतर में हमारी प्रतीक्षा कर रही है।